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  दोस्तों आज KK Educenter आप सब छात्रों के समक्ष बिहार राज्य का विभाजन, विभाजन से पूर्व और बाद की पूरी जानकरी आपके लिए उपलब्ध करा रहा है। इस पोस्ट के माध्यम से आप “बिहार राज्य का विभाजन” के बारे जानकारी हासिल कर पाएंगे जो की आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं में काफी मददगार साबित होगा। हम इस लेख के माध्यम से आपको बता रहे है।


   बिहार का वर्तमान राजनैतिक स्वरूप कई चरणों से गुजरते हुए 15 नवंबर, 2000 को नए रूप में अस्तित्व में आया। 1 अप्रैल, 1912 को बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर बिहार एवं ओड़िशा नामक प्रांत का गठन हुआ। 1 अप्रैल, 1936 को बिहार से ओड़िशा को अलग किया गया। स्वतंत्रता के समय बिहार को 'ए' श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। वर्ष 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया, जिसने वर्ष 1956 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के आधार पर बिहार की राजनैतिक सीमा का पुनर्गठन किया गया है। बिहार के मानभूम, पुरूलिया, पूर्णिया एवं किशनगंज का कुछ भाग पश्चिम बंगाल में सम्मिलित कर दिया गया। पुनः 15 नवंबर, 2000 को बिहार को विभाजित कर झारखंड नामक नए राज्य का गठन किया गया।

 झारखंड को बिहार से विभाजित करने के लिए लंबे समय से आंदोलन चल रहा था। वर्ष 1989-90 में केंद्र सरकार ने 4 राज्यों ओड़िशा, बंगाल, बिहार तथा मध्य प्रदेश के जनजातीय इलाकों को मिलाकर राज्य बनाने के लिए विचार करने हेतु 'झारखंड मामलों पर समिति का गठन किया था। इस समिति ने यह कहते हुए कि इससे क्षेत्रवाद एवं अलगाववाद को बल मिलेगा तथा क्षेत्रीय विकास में असंतुलन को बढ़ावा मिलेगा, झारखंड निर्माण की माँग को नकार दिया था। अतः जनजातीय जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए ही अंततः वर्ष 1995 में 'झारखंड स्वशासी क्षेत्र परिषद' का गठन किया गया। अंततः 15 नवंबर, 2000 को बिहार से झारखंड को पृथक कर दिया गया।

बिहार विभाजन के प्रभाव को समझने के लिए विभाजन के पूर्व की स्थिति पर ध्यान देना आवश्यक है। अविभाजित बिहार का क्षेत्रफल 1,73,476 वर्ग किलोमीटर था। विभाजन के बाद बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर रह गया जो कुल क्षेत्रफल का 54 प्रतिशत भाग है, जबकि कुल जनसंख्या का 75 प्रतिशत (8.2 करोड़) बिहार के पास रह गया। बिहार के 56 जिलों में से 18 जिलों को मिलाकर झारखंड का निर्माण किया गया। अविभाजित बिहार के 324 विधानसभा सीटों में से 243 बिहार में रह गई एवं 81 सीटें झारखंड में चली गई। लोकसभा की 54 सीटों में से 40 सीटें एवं विधानपरिषद की 96 सीटों में से 75 सीटें बिहार में रहीं। चूँकि झारखंड में विधानपरिषद की व्यवस्था नहीं है, अतः जब तक शेष विधानपार्षदों की कार्यावधि समाप्त नहीं हो गई तब तक उन पार्षदों का दायित्व बिहार पर ही रखा गया।

विभाजन का सर्वाधिक प्रभाव आर्थिक क्षेत्र पर पड़ा। राज्य के बड़े औद्योगिक केंद्र जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद आदि झारखंड में चले गए। खनिज संसाधन, जिसके लिए बिहार देश में सबसे धनी राज्यों में से एक था, विभाजन के बाद प्रमुख खनन क्षेत्र धनबाद, हजारीबाग, पलामू, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम आदि झारखंड में चले गए। राज्य के कुल वन क्षेत्र का 23,605 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र झारखंड में चला गया। इस प्रकार प्रमुख संसाधन खनिज एवं वन तथा बड़े औद्योगिक केंद्र के झारखंड में चले जाने से बिहार मूलतः कृषि प्रधान राज्य बनकर रह गया है।

एकमात्र प्रमुख औद्योगिक केंद्र बरौनी जहाँ तेलशोधन उद्योग, ताप ऊर्जा केंद्र एवं रासायनिक उर्वरक उद्योग स्थापित हैं, बिहार में रह गया। उद्योग के नाम पर बिहार में चीनी उद्योग, जिसमें अधिकांशतः बीमार अथवा बंद हैं तथा डालमियानगर जैसे कागज एवं सीमेंट के बंद कारखाने ही रह गए हैं। ऊर्जा के क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में ऊर्जा उत्पादन का बहुत कम हिस्सा बिहार को मिला। अविभाजित बिहार में स्थापित कुल विद्युत निर्माण क्षमता का 64 प्रतिशत झारखंड को जबकि मात्र 36 प्रतिशत बिहार को मिला। बिहार में विभाजन के समय बरौनी एवं कॉटी ताप विद्युत संयंत्र जो रुग्ण अवस्था में थे, बिहार के हिस्से में आया था। राज्य विभाजन के बाद कुल वन संसाधन का मात्र 21 प्रतिशत बिहार के पास तथा कुल खनिज संपदा का 6 प्रतिशत बिहार के हिस्से में मिला है। विभाजन के पूर्व बिहार में नगरीकरण का स्तर 13.14 प्रतिशत था जो विभाजन के बाद घटकर 10.76 प्रतिशत रह गया है। विभाजन के बाद राज्य का अधिकांश हिस्सा बाढ़ प्रभावित अथवा सूखा प्रभावित क्षेत्र के रूप में है, जिसके कारण राज्य की आय का अधिकांश हिस्सा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य में खर्च हो जाता है।

राज्य के विभाजन का प्रभाव परिसंपत्तियों के बँटवारे एवं राजस्व विभाजन पर भी पड़ा है। इसके कारण शेष बिहार पर वित्तीय संकट की स्थिति उत्पन्न हुई। झारखंड बिहार राज्य के कुल राजस्व में विभाजन के पूर्व 37.76 प्रतिशत का योगदान देता था। केंद्रीय कर में राज्य के कुल केंद्रीय कर का झारखंड क्षेत्र का हिस्सा 48.36 प्रतिशत था। इस तरह संसाधनों की कमी बिहार में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। विभाजन के बाद झारखंड क्षेत्र का विकास शेष बिहार की तुलना में अधिक हुआ है, जबकि शेष बिहार में इसकी गति धीमी रही है। वर्ष 1990-91 में जहाँ अविभाजित बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) 26,71,661 लाख रुपये था तथा प्रति व्यक्ति आय 3119 रुपये थी, जिसमें झारखंड क्षेत्र में पड़ने वाले भाग का GSDP 10,47,824 लाख रुपये एवं प्रति व्यक्ति आय 4,827 रुपये तथा शेष बिहार क्षेत्र में पड़ने वाले भाग का GSDP 16,23,837 लाख रुपये एवं प्रति व्यक्ति आय 2599 रुपये रह गई। यह आँकड़ा क्षेत्रफल एवं जनसंख्या के अनुपात के दृष्टिकोण से असंतुलन की स्थिति को स्पष्ट करता है।

विभाजन के बाद बिहार को एक गंभीर संकट परिसंपत्तियों के बँटवारे से संबंधित झेलना पड़ा है। संयुक्त बिहार का बिहार राज्य विद्युत निगम, बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम, बड़े औद्योगिक केंद्र, बड़े उद्योगों पर आधारित छोटे-छोटे उद्योग एवं अन्य लोक संस्थाओं की अधिकांश इकाइयाँ झारखंड क्षेत्र में स्थित होने से परिसंपत्तियों के बँटवारे में शेष बिहार को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

विभाजन के कारण राज्य की सामाजिक संरचना पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा। विभाजन के पूर्व राज्य में जनजातीय क्षेत्र की बहुलता थी। अनुसूचित जनजातियाँ के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं केंद्र द्वारा संचालित होती थीं, जिससे राज्य को अधिक राजस्व की प्राप्ति होती थी। विभाजन के पश्चात अधिकतर जनजातीय क्षेत्र झारखंड में चले जाने के कारण राजस्व भी झारखंड के हिस्से में चला गया, जिसका प्रभाव बिहार की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ा। विभाजन के पश्चात गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले अधिकतर परिवारों की संख्या बिहार में रह गई, जिससे आर्थिक बोझ में वृद्धि हुई एवं विकास कार्य प्रभावित हुआ।


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